सदन में कोर्ट की अवेलना, 29 जनवरी को विशाल जन समूह के साथ लड़ाई की होगी शुरुआत-विधायक चेतन आनंद
न्यूज़ डेस्क:- पूर्व सांसद और बाहुबली आनन्द मोहन की रिहाई की मांग एवं महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि को लेकर फ्रेंड्स ऑफ आनन्द के बैनर तले 29 जनवरी 2022 को सिंह गर्जना रैली का आयोजन पटना के मिलर स्कूल मैदान में किया जाएगा। जिसके लिए जेल में बंद आनंद मोहन की पत्नी पूर्व सांसद लवली आंनद उनके पुत्र राजद विधायक चेतन आनंद एवम उनकी बेटी सुप्रीम कोर्ट की बकील सुरभि आनंद ने सम्बदाता सम्मेलन किया।
जिसमें वर्तमान सरकार पर जांन बूझकर परेशान करने के साथ ही आनन्द मोहन को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। आनन्द मोहन के परिवार ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि व्यक्ति विशेष को टारगेट करकर परेशान किया जा रहा है, जिसको लेकर आंदोलन चलाया जाएगा ।विधायक चेतन आनंद 14 साल 6 महीने की सजा पूरा करने के बाद भी उनकी रिहाई वर्तमान सरकार नही कर रही है। उन्होंने कहा कि दिनांक 7 मार्च 2017 को बिहार में ही पटना हाई कोर्ट के जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह एवं जस्टिस विकाश जैन की बेंच ने यह साफ कर दिया था कि “चाहे जुर्म कितना भी जघन्य क्यों न हो, कैदी को उसके परिहार के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता।” लेकिन 3 दिसंबर को सदन प्रभारी गृह में बिजेंद्र यादव ने सदन में कोर्ट ऊपर उठाकर फैसला सुना दिया, कि लोक सेवक के हत्या के जुर्म वाले कैदी को परिहार नहीं मिल सकता है।
जबकि इस विषय पर लगातार पिछले कुछ सालों में अनेको हाई कोर्ट ने विभिन्न राज्यों में फैसला सुनाया और सैंकड़ों की संख्या में विभिन्न राज्य सरकारों ने कैदियों को परिहार दिया, मुक्त भी किया है। हमारे बिहार में सबसे बड़ी कमी इस बात की है कि ‘दिल्ली मॉडल’ के हिसाब से यहाँ पारदर्शिता नहीं है। ना वेबसाइट से, ना किसी और तरीके से परिहार पाने वाले या परिहार से वंचित लोगो की सूची, चाहे आम आदमी हो या खास आदमी, किसी को भी उपलब्ध नहीं हो पाती। इसका खामियाजा मेरे पिता जी को उठाना पड़ रहा है । चेतन आनन्द ने कहा कि कानून में बदलाव करके सरकार आनन्द मोहन को बाहर नहीं निकलने दे रही है। वही आनंद मोहन की बेटी सुप्रीम कोर्ट की वकील सुरभि आनंद ने बताई कि माननीय प्रभारी गृहमंत्री ने विगत 03/12/21को अपने वक्तव्य से सदन को गुमराह किया है। मंत्री महोदय ने कहा है कि लोसेवक की हत्या के मामले में परिहार देय नहीं है, जबकि हमारा संविधान चाहे राष्ट्रपति हो या चपरासी एक गरीब हो टाटा, विरला,अंबानी में कोई फर्क नहीं करता। फिर मेरे पिता को यह परिहार पूर्व में ही मिल चुका है। कराधीक्षक का प्रस्ताव यह स्वयं बताता है कि यह नियमानुकूल है। क्या मंत्री महोदय न्यायालय से भी बड़े हैं या सदन में अपने पूर्वाग्रह और राजनीतिक विद्वेष का प्रदर्शन कर रहे हैं।
रिपोर्ट:- प्रतिमा कुमारी