मुख्यमंत्री ने पी०एम०सी०एच० के पुनर्विकास कार्यों एवं इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान के नवनिर्मित भवन का लिया जायजा, अधिकारियों को दिए आवश्यक दिशा-निर्देश

न्यूज़ डेस्क – मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को  पी०एम०सी०एच० के पुनर्विकास कार्यों का निरीक्षण कर जायजा लिया। मुख्यमंत्री ने इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान के नवनिर्मित भवन का भी भ्रमण कर निरीक्षण किया। इस भवन में आधुनिक सुविधा मुहैया कराई जा रही है, जिसके बारे में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से एक-एक चीज की जानकारी ली और इसको जल्द से जल्द फंक्शनल करने का निर्देश दिया।

मुख्यमंत्री के समक्ष स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री प्रत्यय अमृत ने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से पी०एम०सी०एच० के पुनर्विकास कार्यों की प्रगति की अद्यतन स्थिति की जानकारी दी। उन्होंने पी०एम०सी०एच० रिडेवलपमेंट मास्टर प्लान के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। साथ ही फेज-1 के अंतर्गत किए जा रहे कार्यों की महीनावार निर्धारित लक्ष्य एवं उसकी प्रगति की जानकारी दी। फेज-1 पूरा होने के बाद 2021 बेड की सुविधा लोगों को उपलब्ध हो जाएगी। उन्होंने बताया कि हमलोग नियमित रूप से प्रोजेक्ट का प्रोग्रेस रिव्यू करते हैं, ताकि निर्माण कार्य तेजी से पूर्ण हो।

प्रस्तुतीकरण के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि पी०एम०सी०एच० का पुनर्विकास कार्य तेजी से पूर्ण करें। इसके निर्माण को पूर्ण करने को लेकर जो समय सीमा निर्धारित की गयी है उससे पहले पूर्ण करने के लिए योजनाबद्ध ढंग से तेजी से काम करें। इसके निर्माण के पूर्ण होने से लोगों को इलाज में और सहूलियत होगी। स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडे ने मुख्यमंत्री को पी0एम0सी0एच0 के रिडेवलपमेंट भवन केमास्टर प्लान का प्रस्तावित मॉडल भेंट किया।

निरीक्षण के दौरान शिक्षा मंत्री श्री विजय कुमार चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडे, पथ निर्माण मंत्री श्री नितिन नवीन मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री प्रत्यय अमृत, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार, बिहार चिकित्सा सेवाएं एवं आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री संजय कुमार सिंह, अपर सचिव स्वास्थ्य श्री कौशल किशोर, निदेशक हृदय रोग संस्थान श्री सुनील कुमार, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह सहित अन्य अधिकारीगण एवं पी०एम०सी०एच० के वरीय प्राध्यापक एवं चिकित्सक उपस्थित थे।

अगर बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है तो समाज के हर एक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी

न्यूज़ डेस्क –  बाल अधिकार एक ऐसा विषय है जिसे वैश्विक स्तर पर जितनी अहमियत दी गई है उसकी तुलना में हमारे देश में आजादी के बाद 6-7 दशक तक यह अनदेखा रहा और इसी अनदेखी के चलते समय की मांग के अनुसार न तो कोई नई दृष्टि विकसित हो पाई है और न ही हम अपनी उस पंरपरा को संजोकर रख पाए जिसमें बच्चा समाज की जिम्मेदारी होता था और पूरा समाज उसके विकास तथा संरक्षण के लिए कार्य करता था। किसी बच्चे के विकास और संरक्षण के लिए सबसे जरूरी यह होता है कि उसके प्रति समाज और सरकार का दृष्टिकोण क्या है। अगर आजादी के बाद से देखे तो लंबे समय में ऐसा कोई भी दृष्टिकोण विकसित नहीं हुआ जिसमें बच्चे के हित्त को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए उसके विकास और संरक्षण की दिशा में पर्याप्त कार्य हुआ हो। इसके उलट अनदेखी के कारण भारत की पुरातन परंपरा भी धूमिल पड़ने लगी जहां समाज ने ही बच्चे को संरक्षण दिया और उसके विकास के समान अवसर मुहैया कराए।
वैश्विक स्तर पर प्रयासो की बात करें तो बाल अधिकारों की महत्ता को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 20 नवंबर को इसे विशेष रूप से बाल अधिकार दिवस के रूप में निर्धारित किया गया है। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत में बच्चों को लेकर ऐसा प्रयास नहीं किया गया है। बाल दिवस एक ऐसा ही प्रयास है। किंतु अगर दृष्टिकोण की बात करें तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जहां बच्चों के अधिकारों को प्राथमिकता दी गई है वहीं भारतीय बाल दिवस लोक लुभावन मेलों से परे अपनी पहचान नहीं बना पाया और इसका समाज के दृष्टिकोण में बदलाव की कोई छाप दृष्टिगोचर नहीं हुई । जबकि ऐतिहासिक रूप से, भारत अपने सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक आचरण के माध्यम से बच्चों के अधिकारों की पुरजोर वकालत और मान्यता देता रहा है। यह स्वतंत्रता के बाद हमारे संविधान में विशिष्ट अधिकारों में अनुवादित हो गया और कालांतर में बाल अधिकार संरक्षण संबंधित कानूनों में समाहित हुए। हाल ही में किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और पोक्सो अधिनियम, 2012 के तहत संशोधन जैसे बच्चों के लिए ऐतिहासिक प्रावधान किए गए हैं, जिससे इन्हें और अधिक प्रभावी बना गया है। इसके अलावा, पीएम केयर्स ने कोविड से प्रभावित सभी बच्चों को संरक्षण प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया है।
भारतीय परिपेक्ष्य में मनाए जाने वाले बाल दिवस में लुभावन और मनोरंजन के साधनों को प्राथमिकता दी गई है न कि ऐसे प्रयासों को जो बच्चों को मानसिक और आत्मिक तौर पर सशक्त करे और उनका संरक्षण सुनिश्चित करे। भवनों और मॉल में आयोजित होने वाले मेलों और आयोजनों में केवल वही बच्चे पंहुच पाते हैं जिनकी अधिकारो तक पहुंच है, किंतु यह आय़ोजन असल जरूरत वाले बच्चों की पंहुच से दूर रहे और न हीं उन बच्चों के जीवन में इससे कोई अमूलचूल परिवर्तन आया जो आज भी सड़क पर जीवन व्यतीत करने तथा भिक्षावृति व बाल मजदूरी में अपना बचपन खो रहे हैं। इन्हीं लोक लुभावन आयोजनों में अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस भी धूमिल पड़ गया और बच्चों के अधिकार के असल मुद्दों की चर्चा के परे हम मेले के आयोजनों में फंसे रहे।
बाल अधिकारों के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव समय की गहरी मांग है और बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए समग्र समाधान आधारित दृष्टोकण को अपनाने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि गरीबी और परिवार की असक्षमता एक ऐसा कारण है जिसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है और वह कभी बाल मजदूरी के लिए मजबूर होते हैं तो कभी तस्करों के चंगुल में फंसकर मानसिक औऱ शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं। इस समस्या की ओर कभी गंभीरता से नहीं सोचा गया। इस समस्या का समाधान भी हमारी वर्तमान व्यवस्था में उपलब्ध है, जिसे चिन्हित कर एनसीपीसीआर ने परिवार को उन सभी योजनाओं से जोड़ने का कार्य शुरू किया है, जिससे अंततः बच्चे परिवार में रह पाए और उनका लालन पालन बच्चे के नजरिए से सबसे उपयुक्त इकाई परिवार में हो सके।
यहां पर एक और बात जिसपर सबसे ज्यादा ध्यान देने की है वह है बच्चे के विकास में समग्र समाज की भूमिका। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज से परे उसके विकास और जीवन की अपनी सीमाएं हैं। इसलिए अगर बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है तो समाज के हर एक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने के लिए देश को बाल दिवस से बाल अधिकार दिवस की ओर कदम बढ़ाना पडेगा और सांकेतिकता से अधिक सार्थक प्रयास किए जाने की अवश्यकता है।

लेखक: प्रियंक कानूनगो, अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)

आशा कर्मियों को सरकारी कर्मियों का दर्जा नहीं मिला तो पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को ठप कर दिया जाएगा

 न्यूज़ डेस्क – बुधवार को  प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हिलसा में बिहार राज्य आशा संघ के बैनर तले आशा कर्मियों ने एक दिवसीय धरना दिया। धरना की अध्यक्षता करते हुए मीना देवी ने कहा कि आशा कर्मियों को सरकारी कर्मियों की तरह सभी प्रकार के कार्यों में लगाया जाता है। इसके बावजूद उन्हें सरकारी कर्मी का दर्जा प्राप्त नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं में अहम भूमिका निभाने वाले आशा कर्मियों के साथ केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि आशा कर्मियों को सरकारी कर्मियों का दर्जा यदि नहीं मिला तो पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को ठप कर दिया जाएगा। जिसकी सारी जिम्मेवारी राज्य सरकार की होगी। धरना के अंत में विभिन्न मांगों से संबंधित एक ज्ञापन प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी को दिया गया। जिसमें पिछला बकाया भुगतान करने, 1000 से 2100 पेमेंट करने, सभी आशा कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी घोषित करने, सरकारी कर्मचारियों के अनुसार सरकारी छुट्टी देने, सरकारी बीमा का लाभ देने, विधानसभा चुनाव में किए गए ड्यूटी का पैसा भुगतान करने, समेत कई अन्य मांगे शामिल है। इस मौके पर रजनी कुमारी, सोनी कुमारी, विभा,सुनीता, किरण, प्रतिमा, पार्वती, ममता, अनीता, राधिका, माया, सुधा, बेबी, सरस्वती, सुशीला,रंजू, रिंकु,गौरी,ममता,अमीरीका, समेत सैकड़ों आशा कर्मी मौजूद थी।

विशेष संवाददाता हिलसा – धनपत