
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना द्वारा दिनांक 16 जुलाई 2025 को “धान की सीधी बुआई प्रणाली में खरपतवार प्रबंधन” विषय पर तीन दिवसीय (16-18 जुलाई 2025) कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। यह कार्यक्रम “कौशल से किसान समृद्धि” परियोजना के अंतर्गत विशेष रूप से अनुसूचित जाति के किसानों के लिए आयोजित किया जा रहा है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 20 प्रगतिशील किसानों ने भाग लिया, जिसमे बिहार के गया जिले से 16 एवं झारखंड के रामगढ़ जिले से 4 थे।
कार्यक्रम का उद्घाटन संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। अपने संबोधन में डॉ. दास ने कहा कि धान की सीधी बुआई में खरपतवार की समस्या एक प्रमुख चुनौती है, और यदि इसका वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन किया जाए तो यह प्रणाली किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकती है। डॉ. दास ने सभी किसानों को प्रेरित करते हुए कहा कि उन्हें फसल की नई किस्मों एवं तकनीकों की जानकारी अवश्य होनी चाहिए, जिससे वे खेती में अधिक लाभ प्राप्त कर सकें। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस प्रणाली को अपनाने से पूर्वी भारत की लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर धान परती भूमि का प्रभावी उपयोग संभव है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. संजीव कुमार ने धान की सीधी बुआई की प्रक्रिया, इसके लाभ, प्रमुख चुनौतियों एवं समाधान पर विस्तृत जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि यह तकनीक न केवल उत्पादन लागत को कम करती है, बल्कि श्रम एवं सिंचाई जल की भी बचत करती है। साथ ही, खरपतवार नियंत्रण की रणनीतियों को व्यवहारिक दृष्टिकोण से समझाया गया।
इस क्रम में डॉ. राकेश कुमार ने खरपतवार प्रबंधन में प्रयुक्त उपयुक्त रसायनों, जल प्रबंधन तकनीकों एवं फसल वृद्धि के विभिन्न चरणों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रकाश डाला। उन्होंने किसानों को प्रभावशाली खरपतवार नियंत्रण तकनीकों की जानकारी दी जिससे खेतों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि संभव हो सके।
पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. पी. के. सुंदरम, डॉ. धीरज कुमार सिंह, डॉ. कुमारी शुभा, डॉ. अभिषेक कुमार दुबे, डॉ. गोस अली एवं संस्थान के सभी विशेषज्ञों ने आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अभिषेक कुमार दुबे ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कुमारी शुभा द्वारा प्रस्तुत किया गया।
यह कार्यक्रम दिनांक 18 जुलाई 2025 तक चलेगा, जिसका उद्देश्य किसानों को नई तकनीकों से सशक्त करना एवं उन्हें उनकी खेती की पद्धतियों में नवाचार के लिए प्रेरित करना है ताकि वे अधिक उत्पादन कर आर्थिक रूप से सशक्त बन सकें।