अब भले ही मोदी जी चार सौ पार का नारा लगाते रहें लेकिन इस मर्तबा उनकी गोटी लाल नहीं होने वाली है.- शिवानंद तिवारी
मोदी जी अपनी चुनावी सभाओं में बार बार कह रहे हैं कि पिछले दस वर्षों में देश ने मेरी सरकार के काम का सिर्फ़ ट्रेलर (झांकी) देखा है. अभी बहुत कुछ होना बाक़ी है. लेकिन पिछले दस वर्षों में उनकी सरकार ने क्या क्या काम किया है. उनको गिनाते हुए बताते हैं कि कश्मीर में 370 ख़त्म किया. मुसलमानों में तीन तलाक़ की प्रथा को समाप्त किया. सबसे बड़ा काम तो अयोध्या में भगवान राम का विराट और भव्य मंदिर बनवा कर उसमें रामलला को स्थापित किया. देखा जाए तो कश्मीर में 370 था तब भी वह भारत का अभिन्न अंग था. आज भी वह हमारा अभिन्न अंग है. बल्कि चीन की सीमा से सटा लेह, लदाख और कारगिल के लोगों में गंभीर असंतोष है. वह इलाक़ा उबल रहा है. अपनी मांगों को लेकर वहाँ लगातार धरना प्रदर्शन और भूख हड़ताल हो रहा है. लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं है. यही हाल मणिपुर का है. कोई भी लायक़ सरकार देश की सीमा के इलाक़ों में नागरिकों की समस्याओं के प्रति अतिरिक्त संवेदनशील रहती है. लेकिन उन इलाक़ों में फैले असंतोष को वहाँ के स्थानीय नागरिकों से बातचीत कर सुलझाने के बदले मोदी सरकार कान में तेल डाल कर सोई हुई है.
अगर स्मरण किया जाए तो 2014 के पहले देश के कारपोरेट सेक्टर ने मीडिया के ज़रिए मज़बूती के साथ निर्णय लेने वाले एक नेता और विकास पुरुष के रूप में मोदी जी की विराट छवि बनाई थी. मनमोहन सिंह जी के दूसरे कार्यकाल में उनकी छवि एक कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में मीडिया के ज़रिए तिल का ताड़ बनाकर दिखाया गया. मीडिया में कोयला घोटाला, टू जी घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम आदि घोटाला की पृष्ठभूमि में मोदी जी भारतीय राजनीति में धूमकेतु के तरह अवतरित हुए. देश के विभिन्न तबकों को उन्होंने सपना दिखाया. उन्होंने वादा किया था कि दो करोड़ नौजवानों को वे हर साल काम देंगे. किसानों की आमदनी को 2022 तक दोगुना कर देंगे. 2022 तक ही देश की झोपड़ियों को पक्का बना देंगे. विदेशों में जमा काले धन को देश में ले आयेंगे. वह इतना है कि देश के प्रत्येक नागरिक के खाते में पंद्रह पंद्रह लाख रूपया जमा हो जाएग. सबको साथ लेकर सबका विकास करेंगे.
लेकिन क्या हुआ ! अब इस चुनाव में कह रहे हैं कि अब तक तो झांकी थी. खेल अभी बाक़ी है. अब तक मोदी सरकार जिस रास्ते पर चल रही है उससे देश में अरबपतियों की संख्या और बढ़ रही है. अभी मुकेश अंबानी जी ने अपने बेटे का विवाह किया. अरबों रूपया खर्च हुआ. यह दिखाता है कि देश में पूँजी की कमी नहीं है. लेकिन वह कुछ लोगों के हाथ में सिमट कर रह गई है. होना तो यह चाहिए था कि इन पर टैक्स लगाकर उस पूँजी का इस्तेमाल ग़रीबों की ग़रीबी दूर करने में लगाया जाता लेकिन उल्टा हो रहा है. बड़े बड़े उद्योगपतियों को टैक्स में छूट दी जा रही है. बताया जा रहा है कि इससे पूँजीपति देश में पूँजी का निवेश करेंगे और देश का विकास होगा. लेकिन यह भी नहीं हो रहा है.
आज़ादी के बाद द्वितीय पंचवर्षीय योजना से विकास के लिए आधुनिक कल कारख़ानों और बड़े बड़े बाँधों का रास्ता अख़्तियार किया गया. विकास के इस रास्ते से देश की ग़रीबी और बेरोज़गारी दूर होगी यह सपना देखा और दिखाया गया. आज तो तकनीक का ऐसा विकास हो चुका है जिससे मनुष्य की ज़रूरत तेज़ी के साथ घटती जा रही है. यह तकनीक बेरोज़गारी घटाती नहीं, बल्कि बढ़ाती है. यह हमारी समस्याओं का निदान नहीं करती बल्कि बढ़ाती हैं. आधुनिक तकनीक और उसमें लगने वाली अगाध पूँजी के लिए हमें यूरोप और अमेरिका पर आश्रित रहना पड़ेगा. इसके अलावा विकास का यह रास्ता पर्यावरण को गंभीर नुक़सान पहुँचा रहा है. देश में नदियाँ सूख गईं हैं और सूख रही हैं. बैंगलोर जैसे आधुनिक और समृद्ध शहर में पीने के पानी का गंभीर संकट उपस्थित हो गया है. ऐसे क्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं.
आज़ादी के पचहत्तर वर्ष बाद भी देश की मात्र पैंतीस प्रतिशत आबादी ही शहरों में रहती है. उनमें भी लगभग आधी आबादी शहरों के फुटपाथों और गंदे नालों के किनारे बसी हुई है.आज भी देश की आबादी का 65 प्रतिशत कृषि पर निर्भर है. देखा जाए तो देश के कुल कार्य बल का लगभग 94 प्रतिशत कृषि और असंगठित क्षेत्र में काम करता है. असंगठित क्षेत्र यानी जहां दस व्यक्ति से कम काम करते हैं. यहाँ न तो काम का नियमित समय है और न ही पारिश्रमिक का कोई नियम है. तकनीक और पूँजी के अभाव में उत्पादकता भी कम है.
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में स्पष्ट है कि देश के विकास का अर्थ है कृषि और असंगठित क्षेत्र का विकास. आज एक बड़ी आबादी की क्रयशक्ति ना के बराबर या बहुत कम है. बाज़ार में मंदी का मुख्य कारण यही है. स्पष्ट है कि देश के इन दो बड़े क्षेत्र में लगे श्रम बल की आमदनी नहीं बढ़ाई जाएगी तब तक देश उपर नहीं उठ सकता है.
लेकिन मोदी जी की सरकार ने जिन क्षेत्रों में देश की विशाल आबादी लगी है उसको उपर उठाने के लिए सिर्फ़ प्रतीकात्मक प्रयास किया. सब देख रहे हैं कि देश में अरबपतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. दूसरी ओर किसानों में आत्महत्या की संख्या में कमी नहीं आ रही है. देश में एक छोटी आबादी के हाथ में अकूत धन है. देश के इतिहास में ऐसी भयानक ग़ैर बराबरी कभी नहीं थी.
इसके चलते समाज में विकृति फैल रही है. नौजवानों में नशाखोरी और हिंसक प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है. दूसरी ओर प्रधानमंत्री जी भाषण देने, कपड़ा और पगड़ी पहनने में कभी भी न टूटने वाला रिकॉर्ड क़ायम करते जा रहे हैं.
आजकल मोदी जी देश की जनता को नया बाइस्कोप दिखा रहे हैं. हमारा देश दुनिया की पाँचवीं अर्थ व्यवस्था बन गया है. एक सौ चालीस करोड़ का देश पाँचवीं अर्थ व्यवस्था बन गया है, इसमें मोदी जी का क्या योगदान है !यह तो उनके बग़ैर भी बनता. तरक़्क़ी और विकास की असली कसौटी तो प्रति व्यक्ति आमदनी है. इस मामले में हमारा देश अफ़्रीका के छोटे से देश अंगोला से भी नीचे है. असलियत यह है कि इस मामले में 197 देशों की सूची में हमारा देश 142 वें स्थान पर है. मोदी जी के राज में अच्छी पढ़ाई और अच्छा इलाज आम आदमी की पहुँच से दूर होता जा रहा है. लेकिन मोदी जी का दावा है कि देश में हरियाली है. लोग त्रस्त हैं. लेकिन मोदी जी भाषण देने में व्यस्त हैं