सत्ता का अहंकार को जनता कभी नहीं करती स्वीकार: शक्ति सिंह यादव
बिहार प्रदेश राष्ट्रीय जनता दल के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने विधान पार्षद कारी मोहम्मद सोहैब, डाॅ0 अजय कुमार सिंह, रिंकु कुमार, अशोक कुमार पाण्डेय, प्रदेश प्रवक्ता एजाज अहमद, अरूण कुमार यादव एवं प्रमोद कुमार सिन्हा की उपस्थिति में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया।
अपने संबोधन में श्री शक्ति सिंह यादव ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री के अडि़यल रवैया, जिद्दीपन और अडि़यल रूख के कारण अकारण ही विधान परिषद में विपक्ष के मुख्य सचेतक डाॅ0 सुनील कुमार सिंह की सदस्यता समाप्त कर दी गई, इसे काला दिन के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा। एक शासक की जिद्दी रवैया और उनके अडि़यल रूख को खुश करने के लिए दो व्यक्ति ने अपने आप को लाभान्वित करने के एवज में ये पटकथा बहुत पहले ही लिख दी थी। और कहीं न कहीं मुख्यमंत्री ने इन दोनों को उसका पुरस्कार लोकसभा के टिकट तथा दूसरे को उप सभापति बनाकर किया। इस तरह की पटकथा बहुत पहले ही लिख दी गई थी और उसी के तहत सुनिल सिंह जी की सदस्यता समाप्त की गई और दूसरे विधान परिषद सदस्य कारी मोहम्मद सोहैब को दो दिन के लिए सदन से निलंबित करने का प्रस्ताव लिया गया। इस मामले में ज्यादा से ज्यादा सजा ये होना चाहिए था कि पीठासीन पदाधिकारी इस मामले की भत्र्सना करवाकर मामले पर चर्चा करवा लेते लेकिन इन्हें सफाई रखने तक का मौका नहीं दिया गया जबकि सुनिल सिंह जी ने आचार समिति के सभापति से लिखित में मांगा था कि उनका दोष क्या है और उन्हें किस मामले में दंडित किया जा रहा है लेकिन उसका कोई भी साक्ष्य, तथ्य या सबूत नहीं दिया गया। जबकि मुख्यमंत्री जी ने स्वयं बार-बार कहा था कि सुनिल सिंह को बर्बाद कर देंगे। नेता सदन के द्वारा इस तरह की भाषा पर आचार समिति ने कोई मामला दर्ज नहीं किया जबकि लोकतंत्र में विपक्ष का काम होता है सरकार के गलत कार्यों पर सरकार को आईना दिखाना और सुनिल जी लगातार जनता के मुद्दे, किसानों के सवाल, बिहार में बढ़ते भ्रष्टाचार तथा सरकार के क्रियाकलाप चर्चा करते थे लेकिन उस पर कभी भी सरकार ने सुनने का काम नहीं किया। जबकि विपक्ष के आवाज को दबाने के लिए और एक व्यक्ति के जिद्द और उन्हें खुश रखने के लिए इस तरह की कार्रवाई की गई। चुनाव में व्यस्त रहने के बाद भी सुनिल जी ने आचार समिति के सामने उपस्थित होकर अपना पक्ष रखा लेकिन उनकी बातों को अनसूना कर दिया गया। सदन में जब इस मामले पर चर्चा हो रही थी तब भी सुनील जी को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया जबकि लोकतंत्र में सबको पक्ष रखने का मौका मिलता है।
सुनिल जी ने बार-बार सुबुत और साक्ष्य की माँग की और साथ ही वह विडियों माँगा जिसके आधार पर नोटिस किया। लेकिन उसके बाद भी उनपर कार्रवाई कि गई जबकि सुनिल जी को बर्बाद करने की धमकी देने वाले मुख्यमंत्री के मामले पर आचार समिति ने चुप्पी साध ली। इस तरह का कृत्य लोकतंत्र को कमजोर करता है। सबको पता है कि लगातार मुख्यमंत्री जी ने सदन के अन्दर अपमानजनक भाषा पूर्व मुख्यमंत्री श्री जीतन राम मांझी जी के लिए इस्तेमाल किया उस पर भी सभी खामोश रहे। लालू जी और श्रीमती राबड़ी देवी जी के संबंध में किस तरह के अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जाता है सदन के अन्दर उस पर भी आचार समिति खामोश क्यो है। विधान सभा और विधान परिषद में मुख्यमंत्री ने बार-बार महिलाओं के संबंध में अश्लील और मर्यादाहीन भाषा का इस्तेमाल किया तथा दलित समाज से आने वाली महिला विधायक को किस तरह से अपमानित करने के लिए मर्यादाहीन भाषा इस्तेमाल की गई उस पर सत्ता पक्ष और आचार समिति खामोश क्यो है। लोकतंत्र को सत्ता के जोर पर और एक व्यक्ति के जिद्द को पूरा करने के लिए सदस्यता समाप्त करने की प्रक्रिया अपनायी गई जो कहीं से उचित नहीं है। सत्ता का अहंकार जनता कभी स्वीकार नहीं करती है ये बात सबको समझनी चाहिए।
राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता डाॅ0 अजय कुमार सिंह ने कहा कि सुनील सिंह पर जिस तरह से कार्रवाई की गई उससे लोकतंत्र शर्मशार हुआ है और जो बिहार लोकतंत्र की जननी रही है वहां पर ऐसी कार्रवाई से कहीं न कहीं लोकतंत्र की स्थापना करने वाले की आत्मा रो रही होगी। उन पर कार्रवाई करके कौन सा उदाहरण और नजीर प्रस्तुत किया गया है यह क्षत्रीय समाज स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।