बिहार में पंचायती राज व्यवस्था लागू लेकिन बिहार सरकार उसे अधिकार विहिन बना दिया है-राजद

राजद के प्रदेश उपाध्यक्ष पूर्व मंत्री  वृषिण पटेल ने आज राजद के प्रदेश कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि जिस उद्देश्य को लेकर पंचायती राज व्यवस्था लागू किया गया था। पर दुर्भाग्य है कि बिहार सरकार उसे अधिकार विहिन बना दिया है।
गांधी के सपनों को साकार करने के लिए 10वीं लोकसभा के तत्कालीन सरकार ने 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित करवाया और 24 अप्रैल, 1993 से पूरे देश में पंचायती सरकार व्यवस्था लागू हो गया। मेरा सौभाग्य है कि मैं भी उस 10वीं लोकसभा का एक सदस्य था। इस नाते मेरी भी जवाबदेही बनती है कि मैं अपने राज्य को महात्मा गांधी के सपनो का राज्य बनाने में अपना सकारात्मक सहयोग करूं।


इसी संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा एक नवीन अनुसूची 11 संविधान में जोड गया है। जिसमें 29 विषयों को सूचीबद्ध किया गया है। ये 29 विषय कृषि, भूमिसुधार, चकबंदी, जलप्रबंधन, पशुुपालन, मत्स्य उद्योग, कुटीर उद्योग, खादी ग्राम उद्योग, पेयजल, सड़क, पुल-पुलिया, ग्रामीण विद्युतीकरण, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, शिक्षा (प्राथमिक एवं माध्यमिक) पुस्तकालय, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास, दुर्बल वर्गों का कल्याण आदि से संबंधित है। 73वां संविधान अधिनियम द्वारा पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियों और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है। जिसके तहत उपरोक्त 29 विषयों को क्रियान्वयन करने के साथ ही राज्यों द्वारा एकत्र टैक्सों, ड्यूटियों, टोल और शुल्कों को पंचायतों को हस्तांतरण करने की व्यवस्था है। परन्तु दुर्भाग्य है कि बिहार की एनडीए सरकार द्वारा इस दिशा में अभी तक कोई भी पहल नहीं किया गया। बिहार की वर्तमान सरकार द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को अभी तक प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार हस्तांतरित नहीं किया गया है।


संविधान द्वारा स्थानीय स्तर पर योजना तैयार करने के साथ ही इसके कार्यान्वयन एवं पर्यवेक्षण की जिम्मेवारी पंचायती राज संस्थाओं को दिया गया है। पर इसके उलट योजना राज्य सरकार बनाती है और उसका कार्यान्वयन पदाधिकारियों द्वारा करवाया जाता है। इसमें पंचायती राज के प्रतिनिधियों को गौण रखा जाता है। जिसका नतीजा है कि सरकारी पदाधिकारियों के लूट का ठीकरा पंचायत प्रतिनिधियों के सर पर डाल दिया जाता है, जो उस कहावत को चरितार्थ करती है ‘‘खेत खाए गदहा, मार खाय जोरहा (जोलहा)’’ । नीतीश सरकार की लूट की सजा पंचायत के प्रतिनिधियों को झेलना पड़ा। 90 से 95 प्रतिशत पंचायत प्रतिनिधि नीतीश कुमार के भ्रष्टाचार के बली चढ़ गये। यदि यह व्यवस्था नहीं बदली तो आगे भी निरपराध पंचायत प्रतिनिधि इसके शिकार बनेंगे और नीतीश सरकार के भ्रष्टाचार की बलि चढेंगे।


नीतीश दिन में सौ बार गांधी की दुहाई देते हैं लेकिन वक्त आने पर गांधी को गौण कर गोडसे को गला लगाकर आगे का रास्ता तय करते हैं। आज देश की तमाम लोकतांत्रिक संस्थाएं खतरे में है, क्या नीतीश कुमार पंचायती राज के संवैधानिक अधिकार को स्थापित करने के लिए कदम उठायेंगे।
संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित प्रदेश प्रवक्ता चितरंजन गगन ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और बिहार सरकार के मंत्री अशोक कुमार चौधरी द्वारा कल दिये गये उस बयान का तीखे शब्दों मे प्रतिवाद किया है जिसमें उनके द्वारा कहा गया था कि बिहार में पहली बार नीतीश कुमार की सरकार ने पंचायती संस्थाओं का चुनाव कराया था।


श्री गगन ने उनके दावे को झूठ करार देते हुए कहा कि बिहार में सबसे पहले 2001 में राबड़ी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में पंचायती संस्थाओं का चुनाव कराया गया था और महिलाओं सहित अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एवं अन्यों क लिए आरक्षण व्यवस्था लागू की गई थी। साथ ही 11वीं अनुसूची में शामिल 19 विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया गया था।
पत्रकार सम्मेलन में पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता चितरंजन गगन, सारिका पासवान, निर्भय अम्बेदकर एवं निराला यादव उपस्थित थे।

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