जहाँ डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने बिताये थे जीवन के अंतिम पल ,उसे आखिरकार अतिक्रमणकारियों से मुक्त करा लिया गया
माननीय उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका संख्या 21044/2021 के संदर्भ में एवं समाहर्ता सह जिला दंडाधिकारी,पटना के न्यायालय में दायर अतिक्रमण अपील वाद संख्या 6/2021 में दिनांक 1.4.2022 को पारित आदेश के आलोक में आज दिनांक 3.4.2022 को बिहार विद्यापीठ,सदाकत आश्रम,कुर्जी,पटना में पिछले कई वर्ष से अवैध रूप से कब्जा कर बनाये गये 15 दुकान एवम 42 आवास को ख़ाली कराकर जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमणमुक्त कर दिया गया है।
पूर्व में उक्त पारित आदेश के आलोक में अंचलाधिकारी,पटना सदर के द्वारा सभी अतिक्रमणकारियों को 24 घंटे के भीतर स्वेच्छा से अतिक्रमण खाली करने हेतु नोटिस का तमिला भी कराया गया। जो नोटिस प्राप्त नहीं किए उनके घर पर नोटिस चिपका दिया गया एवं आम सूचना की गयी।
विदित है कि बिहार विद्यापीठ सदाकत आश्रम कुर्जी पटना के परिसर में अवस्थित कुल 32.80 एकड़ भूमि में से 29.84 एकड़ भूमि की जमाबंदी बिहार विद्यापीठ के नाम से चल रही है। साथ ही उक्त परिसर में अवस्थित भूमि में से 5.25 एकड़ भूमि की जमाबंदी श्री इंदर राय एवं अन्य के नाम से चल रही है। बिहार विद्यापीठ की भूमि पर चल रही समानांतर जमाबंदी को रद्द करने हेतु जमाबंदी रद्दी करण वाद संख्या 120/2021 22 बिहार विद्यापीठ के द्वारा अपर समाहर्ता, पटना के न्यायालय में दायर किया गया है जिसकी सुनवाई चल रही है।
ये बताना आवश्यक है की उक्त बिहार विद्यापीठ सदाकत आश्रम कुर्जी पटना के परिसर में ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सेवानिवृत्ति उपरांत जीवन के अंतिम पल बिताए थे। उक्त स्थल पर दो राजेंद्र स्मृति संग्रहालय भी अवस्थित है। साथ ही उक्त परिसर स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मजहरूल हक एवं लोक नायक जयप्रकाश नारायण से भी जुड़ा हुआ है। इस वजह से उक्त परिसर की भूमि राष्ट्रीय धरोहर भी है।
विदित है कि अतिक्रमणकारियों को उक्त आवास बिहार विद्यापीठ के कर्मी रहते अस्थायी आवासन के लिए उपलब्ध कराया गया था, परंतु सेवनिवृति के उपरांत भी ख़ाली नहीं किया जा रहा था। कुछ कर्मीयों की मृत्यु के उपरांत उनके रिस्तेदार रहने लगे थे। विभिन्न न्यायालयों में बिना किसी वैध दस्तावेज के अनेक मामले दायर कर ज़मीन पर दावा भी किया जाने लगा था। इसी आधार पर उक्त परिसर में आवासन किया जा रहा था जो पूर्णत अवैध था। किसी न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश पारित नहीं था।मौलाना मज़हरूल हक़ के वंशजों द्वारा कुछ भूमि पर इस आधार पर दावा किया जा रहा था की वह भूमि मौलाना साहेब के नाम से ली गयी है। परंतु बिहार विद्यापीठ द्वारा बताया गया की मौलाना साहेब विद्यापीठ के कुलपति थे और कई बार कुलपति के नाम से ज़मीन का क्रय हुआ। परंतु पैसा और भूमि विद्यापीठ की ही थी। अतः उनके दावे को ख़ारिज कर दिया गया।किसी भी ऐतिहासिक भवन को नहीं तोड़ा गया है, बल्कि कर्मियों के जर्जर आवास एवं एवं कर्मीयों द्वारा कालांतर में बनायी गयी अस्थायी संरचनाओं और दुकानों को बिहार विद्यापीठ की अनुशंसा पर तोड़ा गया है।