युवाओं द्वारा फ़ौजी बहाली की नई नीति का उग्र विरोध गंभीर बीमारी का लक्षण है- शिवानन्द तिवारी
युवाओं द्वारा फ़ौजी बहाली की नई नीति का उग्र विरोध गंभीर बीमारी का लक्षण है. बीमारी तो सुरसा की तरह बढ़ती हुई बेरोज़गारी है. कुछ ही दिन पूर्व रेलवे की बहाली में गड़बड़ी की आशंका में युवाओं का इसी तरह का उग्र विरोध हमने देखा था. हालाँकि उसके दायरे का फैलाव इतना नहीं था.
2014 में मोदी जी को सत्ता में बैठाने में युवाओं ने अहम भूमिका निभाई थी. देश के दो विशाल तबके को बहुत ही ठोस आश्वासन उन्होंने दिया था. युवाओं को प्रति वर्ष दो करोड़ रोज़गार और 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुना कर देने का आश्वासन. मोदी जी को सत्ता में आए आठ वर्ष बीत गए. लेकिन मोदी जी की सरकार वायदा पूरा करने की दिशा में नहीं बल्कि उलटी दिशा में चलती हुई दिखाई दे रही है.
मोदी जी की विकास दृष्टि में मानव श्रम पिछड़ेपन और धीमा विकास की निशानी है. इसलिए उनके शासन अवधि में मानव श्रम रोज़ रोज़ विस्थापित हो रहा है. तरह तरह की तकनीक मनुष्य के काम का स्थान ले रही है. अब तो एक एक खेत में मोदी जी ड्रोन पहुँचाने जा रहे हैं.
सेना, पुलिस, रेल आदि की नौकरियों का सपना पालने वाले गरीब तथा अति सामान्य परिवार के बच्चे जहां जगह मिल रही है वहीं तैयारी में लगे दिखाई देते हैं. दो वर्षों से फ़ौज में बहाली नहीं हुई. कुछ जगहों पर बहाली फँसी हुई है. ऐसे में नोट बंदी की तरह अचानक ‘अग्नि पथ’ का मौलिक चिंतन मोदी जी ने पेश कर दिया है.इससे अनवरत तैयारी में जुटे युवाओं को महसूस हो रहा है जैसे उनके सपनों की हत्या कर दी गई हो. इसका नतीजा हमारे सामने है.
देश की हालत अत्यंत ख़राब है. अमीरी ग़रीबी दोनों में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है. मोदी जी के शासनकाल में पहले से चली आ रही आर्थिक गैरबराबरी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. लोग समस्याओं को बर्दाश्त करते रहें इसके लिए सांप्रदायिकता का नशा अबतक कारगर साबित हुआ है. युवाओं का यह उग्र विरोध और नारे की शक्ल में मोदी जी को दी जाने वाली गालियाँ बता रही हैं कि मोदी जी का व्यमोह अब टूटने लगा है.
किसानों की हालत कैसे बदले और देश बेरोज़गारी से मुक्ति की दिशा में कैसे आगे बढ़े इसका जवाब अबतक देश की राजनीति के किसी कोने से नहीं मिल रहा है.