कुढ़नी के सहनी मतदाताओं ने महागठबंधन और एनडीए दोनों से बना ली दूरी
कुढ़नी विधानसभा के उपचुनाव में एनडीए के प्रत्याशी केदार प्रसाद गुप्ता ने 76722 मत प्राप्त कर अपने निकटतक प्रतिद्वंदी महागठबंधन के प्रत्याशी मनोज कुमार सिंह को 3658 मतों से पराजित किया है। इस हार-जीत में सहनी मतदाताओं की अहम भूमिका रही है। सहनी मतदाताओं ने अपनी मंशा साफ कर दिया है। कुढ़नी उपचुनाव में एनडीए की जीत ने यह साबित कर दिया है कि कुढ़नी के सहनी मतदाताओं ने महागठबंधन और एनडीए दोनों से अपनी दूरी बनाए रखी है। कुढ़नी में सहनी समाज के करीब 20 से 22 हजार मतदाता हैं। इस उपचुनाव में 57.9 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था। इस हिसाब से करीब 13 हजार सहनी मतदाताओं ने वोट डाले थे। इनमें मुकेश सहनी की पार्टी के उम्मीदवार को दस हजार मत जबकि निर्दलीय प्रत्याशी शेखर सहनी को 3716 मत प्राप्त हुए जबकि संजय कुमार (सहनी) को 4250 वोट मिले और उपेन्द्र सहनी ने भी 1090 मत हासिल किये। यानी सहनी मतदाताओं के कुल वोटों पर गौर करें तो यह स्थिति स्पष्ट होती है कि इस जाति के मतदाताओं ने महागठबंधन और एनडीए दोनों को नकारा और सहनी को अपनाया है। परिणाम भले ही एनडीए के पक्ष में गया हो। लेकिन अपने वजूद और सम्मान को बचाने का पूरा प्रयास किया है। सहनी मतदाताओं ने दोनों गठबंधनों को बड़ी जीत के अंतर से वंचित रखा है। सहनी समाज ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि आने वाले दिनों में सहनी समाज को दोनों गठबंधनों को नकारना इतना आसान नहीं होगा। एनडीए को कम अंतर से जीत मिली है। इसमें मुख्य रूप से वीआइपी बड़ा फैक्टर रही है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने भी महागठबंधन की हार के लिए अपने परंपरागत वोट के बिखराव का कारण माना है। जगदानंद सिंह का इशारा सहनी वोटरों पर ही है। दरअसल राजद के पूर्व विधायक अनील सहनी की विधानसभा सदस्यता समाप्त होने के बाद यह उपचुनाव कराया गया है। सहनी समाज को उम्मीद थी कि महागठबंधन की ओर से किसी सहनी समाज को उम्मीदवार बनाया जाएगा लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ जिसका टीस सहनी समाज को सता रहा था। खैर इस चुनाव परिणाम में वीआइपी जो बड़ा फैक्टर रही है वह किसकी जीत में सहायक बनी और किसके लिए हार का कारण, इसकी समीक्षा महागठबंधन और एनडीए करेगा। लेकिन इनता तय है कि इस उपचुनाव के परिणाम में वीआइपी के सुप्रीमो मुकेश सहनी के दोनों हाथों में लड्डू थमा दिया है। बिहार की राजनीति में वीआइपी की प्रसांगिकता बरकरार है।