
राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा है कि प्रधानमंत्री जी राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर आगामी 24 अप्रैल को जब वे बिहार आ रहे हैं तो वे बिहार में शोपीस बने पंचायती राज संस्थाओं को शोपीस से निकालकर 73 वें संविधान संशोधन के अनुरूप पंचायती संस्थाओं का अधिकार वापस दिलवाने के लिए पहल करें। अन्यथा राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर आयोजित उनका कार्यक्रम मात्र दिखावटी और चुनावी इवेंट हीं माना जाएगा।
राजद प्रवक्ता ने कहा है कि एनडीए की सरकार में बिहार के पंचायती संस्थाओं को राजद सरकार के समय दिए गए सारे संसाधनों और शक्तियों को काफी सीमित कर दिया गया है। जिसकी वजह से पंचायती संस्थाएं अब केवल शोपीस बन कर रह गई है। इसी वर्ष 12 फरवरी को केन्द्रीय मंत्री एस पी सिंह बघेल द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के लिए जारी किए गए डी आई स्कोर में बिहार को 18 वें पायदान पर बताया गया है।
श्री गगन ने कहा कि सबसे पहले RJD के शासनकाल में ही बिहार में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया था और विकास के साथ ही शासन और प्रशासन में पंचायत प्रतिनिधियों को प्रत्यक्ष भागीदारी दी गई थी। 73वें संविधान संशोधन के द्वारा जो अधिकार पंचायतों को दिए गए थे उसके अनुरूप उन्हें सारे अधिकार सौंप दिए गए थे। योजनाओं के चयन एवं मोनिटरिंग के साथ हीं सारे प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार पंचायती राज व्यवस्था को सौंप दिए गए थे।2004 में केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए गए डी आई स्कोर में बिहार वन टू फाइव में था।
पंचायती राज व्यवस्था के प्रति वर्तमान सरकार की उदासीनता की वजह से अब तक पंचायती राज व्यवस्था की नियमावली भी सरकार नहीं बना पाई है।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री काल में ही बिहार में पंचायती राज अधिनियम 1993 बनाकर पंचायती राज संस्थाओं को स्वायत्ता दी गई थी और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में 2001 में पंचायत प्रतिनिधियों का चुनाव कराया गया था। राजद शासनकाल 2001 में हुए पंचायती संस्थाओं के चुनाव में ही महिलाओं और अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू की गई।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा तो शुरू से हीं पंचायती व्यवस्था का विरोधी रहा है।भाजपा के विरोध के बावजूद पंचायती राज अधिनियम 1993 बन गया और 1996 में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो भाजपा और तत्कालीन समता पार्टी (JDU) के इशारे पर आरक्षण प्रावधानों के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट दायर कर चुनाव पर रोक लगवा दी गई थी। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार ने राजद के समय बने अधिनियम में संशोधन कर डीडीसी की जगह पर बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी बना दिया गया। जबकि 73 वें संविधान संशोधन में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि जिला परिषद का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी जिलाधिकारी के समकक्ष स्तर के पदाधिकारी ही होंगे। इसी प्रकार पंचायत समिति का कार्यपालक पदाधिकारी की जिम्मेदारी से प्रखंड विकास पदाधिकारी को हटाकर कनिय अधिकारी को पंचायत समिति का कार्यपालक पदाधिकारी बना दिया गया। साथ हीं पुरे पंचायती राज व्यवस्था को अफसरशाही के हवाले कर दिया गया और पंचायती राज व्यवस्था केवल शोपीस बनकर रह गया है।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि प्रधानमंत्री जी जब राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर पंचायत प्रतिनिधियों को सम्बोधित करने बिहार आ रहे हैं तो उन्हें उनके मंत्री द्वारा गत 12 फरवरी को जारी किए गए डी आई स्कोर पर भी प्रकाश डालना चाहिए। साथ हीं बिहार में पंचायती व्यवस्था को शोपीस से निकालने और अफसरशाही के चंगुल से मुक्त कराने की दिशा में भी पहल करनी चाहिए।