
बिहार के उपमुख्यमंत्री श्री विजय कुमार सिन्हा ने राजद-कांग्रेस पर दोहरेपन की मानसिकता से राजनीति करने का आरोप लगाया है । उन्होंने कहा कि ये पूरी तरह अवसरवादी लोग हैं, जो चुनाव का मौसम देख कथनी और करनी बदल लेते हैं ।
श्री सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे साहब 130 वें संविधान संशोधन विधेयक को भला-बुरा कह रहे हैं उन्हें राहुल जी से पूछना चाहिए जब उन्होंने लालू जी को आरोप तय होने के बाद मंत्री पद पर बनाए रखने का अध्यादेश फाड़ डाला था ,वही राहुल जी आज तेजस्वी यादव के साथ कैसे घूम रहे हैं ? और तेजस्वी यादव जी को भी सोचना चाहिए कि जिन्होंने उनके पिता से मंत्रीपद छीनने का व्यूह रचा था उनके साथ वे राजनीतिक पर्यटन में जुटे हैं ।
श्री सिन्हा ने आगे कहा कि दरअसल राजद और कांग्रेस आज देश में सिद्धांत और शुचिता से विहीन राजनीति का प्रतीक बन चुकी है । इनलोगों का एकमात्र उद्देश्य भ्रामक वातावरण बनाकर सत्ता पर काबिज होना है । इन्हें भलीभांति पता है कि अपराध और भ्रष्टाचार की ग्रंथि इनके घर इतने गहरे तक फैली हुई है कि ये लोग फंसेंगे ही । इसलिये इनको आदरणीय प्रधानमंत्री जी के विशेष पहल पर लाए जा रहे 130 वें संविधान संशोधन बिल से डर लग रहा है । ये लोग पहले तो बिल को संसद में पेश नहीं होने देना चाहते थे, जबकि बिल का संयुक्त संसदीय समिति(JPC) जाना पूर्वनिर्धारित था । अब ये JPC में शामिल होने से भी इनकार कर रहे और देशभर में इस बिल को लेकर भी भ्रम फैला रहे हैं ।
श्री सिन्हा ने कहा कि राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को रोकने के लिए जब 1975 में 39 वां संविधान संशोधन किया गया था । तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के साथ खुद को ‘सुरक्षा कवच’ में रख लिया था । लेकिन 130 वें संविधान संशोधन बिल में आदरणीय मोदी जी ने स्वयं को भी इस दायरे में रखा है । देशभर में उनके इस कदम की तारीफ हो रही है । इसी तरह अपराध और भ्रष्टाचार को लेकर माननीय मुख्यमंत्री जी की नीति भी शुरू से ‘जीरो टॉलरेंस’ की रही है । इस मायने में हमारे दोनों नेता आज देश में सिद्धांत और शुचिता के पर्याय माने जाते हैं । जबकि राजद-कांग्रेस के लोग सजायाफ्ता होने पर भी सत्ता की बागडोर अपने हाथों में रखना चाहते हैं । निश्चित रूप से यह देश के लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है ।
श्री सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस और राजद ने हमेशा कथनी और करनी में अंतर की राजनीति की है । ये संविधान हाथ में लहराते फिरते हैं वहीं दूसरी तरफ स्थापित संवैधानिक प्रक्रिया तक को मानने से इनकार करते हैं । ये लोग राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि होकर भी चुनाव आयोग से लेकर माननीय न्यायालयों तक की अवमानना करने से बाज नहीं आते । जबकि इनके सत्ता में रहते हुए शासन से जुड़ी संस्थाओं और एजेंसियों का खुलकर दुरूपयोग किया जाता था । इसके बावजूद भाजपा और NDA के लोगों ने संविधान से जुड़ी व्यवस्था को कभी कटघरे में खड़ा नहीं किया । राजद और कांग्रेस के लोगों को भूलना नहीं चाहिए कि बिहार की जनता सबकुछ देख-समझ रही है । आने वाले चुनाव में वह इनकी करारी हार का स्क्रिप्ट लिखने को तैयार बैठी है ।