कोविड महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर बढ़ी मानसिक बीमारियां, हर सात में से एक व्यक्ति हैं मनोरोग से ग्रस्त
पाटलिपुत्र साइकीऐट्रिक सोसाइटी द्वारा राजधानी पटना के होटल मौर्या (गांधी मैदान के नजदीक) में मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को वैश्विक प्राथमिकता : मीडिया के साथ संवाद और बातचीत सत्र का आयोजन किया गया। इस मौके पर डॉ. पीके सिंह, सेवानिवृत्त प्रोफेसर और पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रमुख और पूर्व निदेशक BIMHAS, आईजीआईएमएस के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. राजेश कुमार और इंडियन साइकायट्रिक सोसाइटी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह निर्वाचित अध्यक्ष डॉ विनय कुमार ने संवाद कर कहा कि कोविड महामारी और उसके बाद वैश्विक स्तर पर मानसिक बीमारियां बढ़ी हैं। आज हर 7 में से 1 व्यक्ति मनोरोग से ग्रसित हैं। इस कार्यक्रम में विभिन्न प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लगभग 30 मीडिया कर्मि शामिल थे। इस अवसर पर पाटलिपुत्र साइकियाट्रिक सोसायटी के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं मीडिया कर्मियों ने संवाद किया।
इस अवसर पर डॉ. पीके सिंह, सेवानिवृत्त प्रोफेसर और पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रमुख और पूर्व निदेशक BIMHAS ने संबोधित किया और कहा कि स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य के सभी ज्ञात आयामों के बीच सबसे महत्वपूर्ण आयाम है। मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण व्यक्तिगत स्तर पर शुरू होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को महत्व देना चाहिए और उनके मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण की देखभाल करने के लिए प्रतिबद्ध रहें।
आईजीआईएमएस के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि वर्तमान में मानसिक बीमारी से प्रभावित लोगों को उपचार के साथ देखभाल की आवश्यकता है। स्वास्थ्य की चर्चा तो बहुत होती है, मगर यह शब्द सामने आते ही हम अक्सर शरीर के बारे में सोचने लग जाते हैं। हम भूल जाते हैं कि जीवित तो वे लोग भी रहते हैं जिनका मस्तिष्क इस तरह नष्ट हो जाता है कि सोचना, समझना, महसूस करना और बोलना असम्भव हो जाता है। यानी जीवित शरीर और मनुष्य में एक फ़र्क़ होता है, और यह फ़र्क़ आता है मस्तिष्क की उस क्षमता, उस क्रियाशीलता से जिसे मानस या मन कहते हैं। यूँ तो मन शरीर से पूरी तरह जुड़ा है और शरीर के मरते ही इसका होना भी समाप्त हो जाता है, मगर यह भी सच है कि कई बार मन बाहर से स्वस्थ दिखते शरीर में बीमार रहता है।
उन्होंने कहा कि कोरोना काल में यह देखा गया कि मानसिक रूप से बीमार लोगों में कोरोना के होने की दर सामान्य लोगों की तुलना 25% से भी अधिक रही। इसके कारण कई सारे हैं मगर मूल कारण हैं – इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोध क्षमता) का ह्रास और अपनी देखभाल में कमी। दूसरा उदाहरण है रोगों को वह समूह जिसे लाइफ़ स्टाइल डिज़ीज़ेज़ कहते हैं, मसलन हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, रक्त में चर्बी का बढ़ना, हृदयरोग तथा मस्तिष्क में खून की नालियों के अवरुद्ध होने या फटने से होने वाले सरीब्रोवैस्क्युलर ऐक्सिडेंट्स। लाइफ़ स्टाइल डिज़ीज़ेज़ और डिप्रेशन यानी अवसाद का गहरा रिश्ता है। अवसाद इनके होने में बड़ी भूमिका निभाता है और ये अवसाद के होने में। समझिए एक तरह का दोतरफ़ा दुश्चक्र बन जाता है। यानी आपका शारीरिक स्वास्थ्य भी आपके मानसिक स्वास्थ्य के बिना असम्भव है। तभी तो एक वर्ष का थीम था -मानसिक स्वास्थ्य नहीं तो कोई स्वास्थ्य नहीं।
इंडियन साइकायट्रिक सोसाइटी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह निर्वाचित अध्यक्ष डॉ विनय कुमार ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा कि मीडिया और मनोचिकित्सा कई तरह से एक दूसरे पर आधारित हैं। मानसिक स्वास्थ्य की समस्या बड़ी है बहुत बड़ी और मनोचिकित्सक बहुत कम। इसलिए मेंटल हेल्थ प्रमोशन और मनोरोगों से बचाव के काम में मीडिया की सख़्त ज़रूरत है। आज बिहार में सिर्फ़ ७० मनोचिकित्सक हैं और मानसिक रूप से परेशान लोगों की संख्या १ करोड़ से भी अधिक। हमें मीडिया की मदद चाहिए कि हम लोगों तक आंतरिक ख़ुशहाली का संदेश पहुँचा सकें। हम उन्हें बता सकें कि जल्दी और सही इलाज से रोगी सामान्य जीवन में लौट सकते हैं। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषा की मदद से समझने में आसानी से अधिक मुश्किल होती है। आम लोग इसे व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखने पर ही आसानी से समझ सकते हैं। तो किसी में क्या देखें तो कहें कि वह मानसिक रूप से स्वस्थ है ? मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में सारी परिभाषाओं का निचोड़ सिर्फ़ तीन शब्द हैं – काम, खेल और प्रेम। यानी यदि आप काम कर सकते हैं, खेल सकते हैं और प्रेम कर सकते हैं तो आप मानसिक रूप से स्वस्थ हैं।
सत्र की शुरुआत उपाध्यक्ष डॉ. पंकज कुमार के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने पाटलिपुत्र मनोरोग सोसायटी और मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के महत्व से अवगत कराया।