आईपीएस की नौकरी छोड़ बने मुखिया ,सिंहवाहिनी में चला ऋतु जयसवाल का जादू

न्यूज़ डेस्क – बिहार के चर्चित मुखिया रही ऋतु जयसवाल के पति जिन्होंने समाज सेवा के लिए आईएएस की नौकरी छोड़ दी थी वही अरुण कुमार इस बार सिंहवाहिनी से मुखिया का चुनाव जीत गए आईएस से मुखिया तक का सफर जो लोग समाज सेवा करते हैं समझ सकते हैं रितु जायसवाल परिहार से इस बार राजद के टिकट पर चुनाव लड़ी थी कहा जाता है कि हर पुरुष के सफलता में नारी का हाथ होता है और ऋतु जयसवाल की सफलता में उनकी प्रसिद्ध मे अगर किसी का सबसे बड़ा हाथ है तो वह उनके पति अरुण कुमार का जो इस बार पत्नी के द्वारा पंचायत का चुनाव नहीं लगने पर खुद मुखिया के चुनाव में उतरे थे और पंचायत के लोगों ने उन्हें प्रचंड बहुमत से मुखिया भी बनाया है। हम आपको बताने जा रहे हैं कि एक आईएएस अधिकारी मुखिया क्यों बना।देश के सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनने के बाद हर इंसान की चाहत होती है कि उसका जीवन बेहतर बने पर बिहार का एक युवा आईएएस की नौकरी छोड़ बिहार के ग्रामीण परिवेश के छात्रों को यूपीएससी और बीपीएससी की परीक्षाओं के लिए तैयार करवा रहा है.बिहार के सीतामढ़ी में जन्मे श्री अरुण कुमार ने सीतामढ़ी के सुदूर गाँव नरकटिया में रह कर सरकारी विद्यालय से 10वीं की परीक्षा पास की। अंग्रेज़ी मीडियम बिहार बोर्ड से पढ़ने वाले लगभग सभी बच्चों केलिए आगे जा कर एक विकराल समस्या बन जाती है। वैसी हीं समस्याओं का अरुण जी को भी सामना करना पड़ा। पर उसी में संघर्ष करते हुए उन्होंने इस रुकावट पर विजय पाई और रांची से आगे की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1995 में UPSC की परीक्षा पास की।अपने 20 साल की लंबी सेवा में उन्होंने रक्षा मंत्रालय, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनल एंड ट्रेनिंग (DOPT) में सेवा देने के साथ-साथ छात्रों केलिए UPSC एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता हासिल करने हेतु एक बेहद ही अलग तरह की पढ़ाने की तकनीक का इजात किया। उस दौरान जो बच्चे उनके सम्पर्क में आये और जिन्होंने अरुण जी के मार्गदर्शन में उनकी पद्धति के हिसाब से पढ़ाई की उन सभी बच्चों ने UPSC में बेहतर रिजल्ट दिया।इस सफलता से प्रोत्साहित हो कर उन्होंने सोंचा की उनके राज्य बिहार से बच्चे दिल्ली जैसे बड़े शहरों में जा कर धक्के खाते हैं और काफी ज्यादा रुपये खर्च करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती। कई मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले बच्चे तो असफलता से निराश हो कर घर के पूरे पैसे खर्च करने के बाद आत्महत्या तक कर लेते हैं। इन विचारों ने उन्हें अभिप्रेरित किया कि क्यों न बिहार वापस जा कर वहाँ पढ़ाई के प्रति ललक रखने वाले बच्चों को अलग पद्धति से तैयारी करवा कर दिल्ली में धक्के खाने आने से रोका जाए।और फिर 20 साल सेवा देने के बाद अंत मे केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), नई दिल्ली जहाँ लगभग सभी IAS अफसरों का पहुँचना सपना होता है, से आयुक्त के पद से उन्होंने स्वैक्षिक सेवानिवृति ले ली और वापस बिहार आ कर बच्चों को दिल्ली के मुकाबले काफी कम पैसे में UPSC की तैयारी करवा रहे।इस पोस्ट के माध्यम से हम बिहार के तमाम वैसे छात्र जो UPSC या अन्य सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना अपना लक्ष्य मानते हैं, को ऐसे मौके से अवगत कराना चाहते हैं और हमारे पेज से जुड़े लोगों को एक ऐसे प्रेरक व्यक्ति के विषय में बताना भी था।

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