
बिहार विधान सभा के मौनसून सत्र के समापन पर विधान सभा अध्यक्ष ने जो अपना समापन भाषण दिया वो सबकी आंख्ने नम कर दी ..सुनिए उनके ही शब्दों में …
माननीय सदस्यगण,
आज जब यह सत्र सम्पन्न हो रहा है, तो मेरे हृदय में एक मिश्रित भावनाओं का तूफान उमड़ रहा है- कहीं संतोष है, कहीं आत्ममंथन और कहीं एक गहरी कृतज्ञता का भाव ।
यह पाँच दिवसीय सत्र, जो 21 जुलाई को आरम्भ हुआ था, हम सबके वर्तमान कार्यकाल का अन्तिम सत्र है ।
इस सत्र में कुल 07 जननायकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई। वित्तीय वर्ष 2025-26 के प्रथम अनुपूरक व्यय विवरणी का व्यवस्थापन हुआ। इस सत्र में कुल 13 राजकीय विधेयकों को स्वीकृति मिली। इसमें कुल 07 अल्पसूचित प्रश्न, 546 तारांकित प्रश्न एवं 64 अतारांकित प्रश्न स्वीकृत हुए । कुल 98 धयानाकर्षण सूचनाएं प्राप्त हुई। कुल 140 निवेदन स्वीकृत हुए। कुल 60 याचिकाएँ स्वीकृत हुईं। कुल 111 गैर-सरकारी संकल्प की सूचना पर सदन में विमर्श हुआ। इस सत्र में शून्यकाल के लिए कुल 109 सूचनाएँ माननीय सदस्यों द्वारा दी गईं। कई महत्वपूर्ण कागजात सदन पटल पर रखे गए ।
माननीय सदस्यगण, पाँच वर्षों की विधायी यात्रा आज औपचारिक रूप से अपनी मंजिल पर पहुँच रही है। यह सत्रहवीं बिहार विधान सभा का समापन भले ही विधान सभा के एक कालखंड का समापन हो परन्तु यह अवधि कई संस्मरणों की संकलित पोटली है, जो हम सबने मिलकर संजोई है।
इस विधानसभा के पटल पर हमने न केवल विधेयकों पर चर्चा की, बल्कि यहाँ विचारों का आदान-प्रदान हुआ, मतभेदों के बीच संवाद हुआ, तीखी बहसें भी हुई, लेकिन लोकतंत्र हमेशा जीवंत रहा, यह आवश्यक भी है कि-
“नाराजगी कभी भी इतनी लम्बी नहीं होनी चाहिए,
कि नाराजगी रह जाए और इंसान गुजर जाए।”
इन पाँच वर्षों में हमने विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य से जुड़ी नीतियों पर विचार किया। महिला सशक्तिकरण से लेकर युवाओं के कौशल विकास तक, कृषि सुधार से लेकर डिजिटल प्रशासन तक आप सभी जनप्रतिनिधियों के सक्रिय सहयोग से हमने विधान सभा की भूमिका को जनसेवा के एक प्रभावी मंच के रूप में सशक्त किया ।
यह भी सच है कि हर कार्यकाल में कुछ इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, कुछ योजनाएँ आकार लेती हैं, कुछ चर्चाएँ आगे की विधायिका के लिए अधूरी छोड़ दी जाती हैं। लेकिन हमें गर्व है कि हम सबने अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा और संवेदनशीलता के साथ निभाने का प्रयास किया।
सदन की कार्यवाही के संचालन में आप सबका सहयोग हमेशा प्रेरणादायक रहा। आपके अनुभव, आपकी उपस्थिति, आपके हास्य विनोद और आपके योगदान ने इस सदन को गरिमा प्रदान की है। किसी ने ठीक ही कहा है-
“हँसते रहोगे तो दुनिया साथ है, वरना आँसुओं को तो आँखों में भी जगह नहीं मिलती ।”
मैं इस अवसर पर विधान सभा सचिवालय के समस्त पदाधिकारियों, कर्मचारियों एवं सुरक्षा कर्मियों, राज्य सरकार के सभी पदाधिकारियों, कर्मचारियों, मीडिया प्रतिनिधियों, सुरक्षा बलों और अन्य सभी सहयोगी संस्थाओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिनकी सतत सेवा भावना और समर्पण ने सदन की कार्यवाही को निर्बाध, मर्यादित और सुचारू रूप से संचालित करने में सहायता की।
माननीय सदस्यगण, लोकतंत्र का सबसे सुंदर पक्ष यही है कि यह परिवर्तन को सहजता से स्वीकार करता है। यह सदन फिर से नवनिर्माण की ओर अग्रसर होगा। कुछ पुराने चेहरे लौटेंगे, कुछ नये जनप्रतिनिधि इस पवित्र भवन में प्रवेश करेंगे। परन्तु लोकतंत्र की यह मशाल जलती रहेगी-जनता के विश्वास से, जनप्रतिनिधियों के उत्तरदायित्व से और संविधान के प्रति हमारी आस्था से ।
अन्त में, मैं यही कहना चाहूँगा कि यह सदन केवल दीवारों और सीटों का समूह नहीं, बल्कि जनता की आशाओं, संघर्षों और विश्वासों का प्रतीक है। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हमें इस मंच पर अपने विचार, चिंतन और निर्णयों के माध्यम से प्रदेश के भविष्य को आकार देने का अवसर मिला ।
इस सदन से बाहर जाते हुए हम सबको यह स्मरण रहे कि हमारे शब्द, हमारे मत, हमारे निर्णय इतिहास में दर्ज होते हैं। वे आने वाले समय की दिशा तय करते हैं। इसलिए हम सबका कर्तव्य है कि जिस गरिमा, संयम और संवेदनशीलता से हमने यहाँ कार्य किया, उसी भावना को समाज और आने वाले प्रतिनिधियों तक पहुँचाएँ।
अब जबकि यह सत्र और इस विधान सभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूँ कि इस सदन के संचालन में मेरी बात से अगर किन्हीं माननीय सदस्य को कोई कष्ट हुआ हो या वे आहत हुए हों तो मैं इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। मैंने पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है। हो सकता है मुझसे कोई चूक हो गई हो। कृपया इसे अन्यथा न लेंगे।
इसके साथ ही मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ आने वाले चुनावों के लिए,
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए और जनसेवा के आपके सतत प्रयासों के लिए। अंत में दो पंक्तियाँ कह
कर अपनी बात समाप्त करूंगा-
खूबियां तो इतनी नहीं हममें,कि तुम्हें कभी याद आएंगे,
पर इतना तो एतबार है हमें खुद पर, आप हमें कभी भूल नहीं पाएंगे।”